न कोई जाति, न ही धर्म, मिलिए Humanity Surname वाली ISC टॉपर सृजनी से

kisded kisdedUncategorized2 weeks ago27 Views

कोलकाता : आजकल लोग अपनी पहचान अपने सरनेम, जाति और धर्म से बनाते हैं। लेकिन कोलकाता की एक 17 साल की लड़की ने पहचान का नया मतलब बताया है। उसने दिखाया है कि असली शिक्षा सिर्फ नंबरों से नहीं, बल्कि अच्छे विचारों से होती है। सृजनी, कोलकाता के ‘द फ्यूचर फाउंडेशन स्कूल’ की छात्रा है। उसने ISC क्लास XII की परीक्षा में 100% नंबर पाए हैं। ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन लोग सिर्फ उसकी पढ़ाई की वजह से ही उसकी तारीफ नहीं कर रहे हैं। सृजनी ने अपना सरनेम इस्तेमाल करने से मना कर दिया है। उसका कहना है कि उसका धर्म सिर्फ मानवता है।

‘किसी को जाति धर्म से नहीं जानना चाहिए’

सृजनी का मानना है कि जब तक हम जाति, धर्म और नस्ल के नाम पर भेदभाव करते रहेंगे, तब तक बराबरी नहीं हो सकती। उसने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को बताया, ‘मैं हर तरह की असमानता के खिलाफ हूं- चाहे वो सामाजिक हो, आर्थिक हो या धार्मिक।’ उसका विचार एकदम सरल है: एक अच्छे समाज में किसी को भी अपनी जाति या धर्म के नाम से नहीं जाना जाना चाहिए।

खुले विचारों वाला है सृजनी का परिवार

सृजनी के परिवार में सब लोग खुले विचारों वाले हैं। सृजनी के माता-पिता ने उसे ऐसे ही विचारों के साथ बड़ा किया है। उसकी मां, गोपा मुखर्जी, गुरुदास कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उसके पिता, देबाशीष गोस्वामी, मशहूर गणितज्ञ हैं और उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी मिला है। वे दोनों हमेशा से जाति और पितृसत्ता के खिलाफ रहे हैं। पितृसत्ता मतलब, जहा पुरुषों को ज्यादा ताकत दी जाती है।

बोर्ड रजिस्ट्रेशन फॉर्म से हटाया सरनेम

जब सृजनी के माता-पिता उसके जन्म प्रमाण पत्र के लिए अप्लाई कर रहे थे, तब उन्होंने उसमें सरनेम नहीं डाला था। उसकी मां ने कहा कि हम चाहते थे कि हमारे बच्चे बिना किसी जाति या धर्म के बोझ के बड़े हों। सृजनी सिर्फ बातें नहीं करती, वो उन्हें अपनी जिंदगी में भी उतारती है। बोर्ड परीक्षा से पहले, उसने स्कूल से अपने रजिस्ट्रेशन फॉर्म में सरनेम हटाने के लिए कहा था। स्कूल के प्रिंसिपल, रंजन मित्रा ने भी उसका साथ दिया। उन्होंने कहा कि जब तक कानून इजाजत देता है, हम परिवार की इच्छा का समर्थन करते हैं।

सोशल एक्टिविटी में भी शामिल

अगस्त 2024 में, सृजनी रीक्लेम द नाईट विरोध में भी शामिल हुई थी। यह विरोध एक PGT डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद किया गया था। सृजनी और उसका परिवार उन हजारों लोगों में शामिल था जो इंसाफ और महिलाओं की सुरक्षा की मांग कर रहे थे। इससे पता चलता है कि सृजनी सिर्फ क्लास में ही नहीं, बल्कि बाहर भी एक्टिव है।

मैथ्स में बढ़ना चाहती हैं आगे

सृजनी जितनी होशियार है, उतनी ही सरल भी है। उसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। राज्य के बिजली मंत्री, अरूप बिस्वास भी उससे मिलने उसके घर गए थे। लेकिन सृजनी में जरा भी घमंड नहीं है। वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बेंगलुरु से फिजिक्स या मैथ्स पढ़ना चाहती है। उसका ध्यान हमेशा सीखने और समाज के लिए कुछ करने पर रहता है।

सृजनी का मानना है कि हर इंसान बराबर है। हमें किसी के साथ भी जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। हमें सभी का सम्मान करना चाहिए। यही सच्ची मानवता है।

शशि मिश्रा

लेखक के बारे में

शशि मिश्रा

निष्पक्षता, ईमानदारी, आत्मविश्वास और जिज्ञासु वृत्ति के साथ पत्रकारिता। जुनून की शुरुआत 2007 में अमर उजाला से। दैनिक जागरण कानपुर ने तराशा। सहारा में पॉलिशिंग और नवभारत टाइम्स ने दी चमक। सफर Navbharattimes.com के साथ जारी। लिखने, घूमने और नई बातों को जानने एक्सप्लोर करने में दिलचस्पी। जीवन का फंडा: हर किसी के पास दो रास्ते होते हैं, भाग लो (Run) या भाग लो (Part)। मैं भागने की जगह भाग लेना चुनती हूं।… और पढ़ें

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