– जातीय जनगणना के बाद वादा किए गए दो लाख रुपये का भुगतान।
– महादलित और दलित परिवारों को तीन डिसमिल जमीन की स्थिति।
– भूमि सर्वेक्षण और अभिलेख डिजिटलीकरण की प्रगति।
प्रशांत किशोर द्वारा बिहार में सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने और किसी भी राजनीतिक गठबंधन से दूरी बनाए रखने का निर्णय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम प्रतीत होता है। यह कई सवाल उठाता है कि क्या उनका नेतृत्व बिहार की राजनीति में परिवर्तन लाने में सक्षम होगा या मतदाताओं तक उनका संदेश प्रभावी ढंग से पहुंचेगा।
राजनीति में प्रमुख मुद्दों को उठाकर जनता तक पहुंचने की उनकी रणनीति-जातीय जनगणना, भूमि समस्या और महादलित वर्ग-राज्य प्रशासनिक कार्यशीलता की समीक्षा करते दिखाई देती हैं। इन मुद्दों को केंद्रित करना संभावित रूप से उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों और निम्न आय वर्ग तक समर्थन बढ़ाने में मदद कर सकता है।
हालांकि, अशोक चौधरी द्वारा लगाए गए मानहानि केस जैसी घटनाएं अभियान पर विवादात्मक ध्यान आकर्षित कर सकती हैं। इससे प्रशांत किशोर सार्वजनिक छवि निर्माण एवं भरोसेमंदता बनाए रखने जैसे चुनौतियों से गुजर सकते हैं।
इस सियासी घोषणा एवं हस्ताक्षर अभियान देश भर के राजनीतिक विश्लेषकों व स्थानीय निवासियों द्वारा करीब से देखा जा रहा है ताकि यह समझा जा सके कि उनके प्रयास शासन प्रणाली संबंधी व्यापक सुधार लाने या केवल नए सियासी समीकरण बनाने तक सीमित रहेंगे।