बिहार में शिक्षक को 30 साल तक नहीं मिला वेतन, प्रधानाध्यापक पद से हो गए रिटायर, अब पत्नी लगा रही गुहा

AdminUncategorized1 month ago41 Views

नालंदा: बिहार के नालंदा जिले के नूरसराय प्रखंड से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां चंद्रशेखर संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय, लोहड़ी में कार्यरत शिक्षक शिवकांत पांडेय को लगातार 30 वर्षों तक वेतन नहीं मिला। 31 मार्च 2025 को प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त हो चुके शिवकांत पांडेय अब भी अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी पत्नी अंजू देवी ने लोक शिकायत निवारण केंद्र में शिकायत दर्ज कर इंसाफ की गुहार लगाई है।

1995 से प्रयासरत शिक्षक, आज तक नहीं मिला वेतन

शिवकांत पांडेय की पत्नी ने बताया कि उनके पति 1995 से लगातार विभागीय कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अब तक वेतन नहीं मिल पाया है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो चुकी है और वे मानसिक तनाव में हैं।

शिक्षा विभाग की दलील: स्कूल बंद मिलने पर रोका गया वेतन

शिक्षा विभाग के अनुसार, स्कूल तीन बार बंद पाया गया था, जिसके चलते वेतन रोक दिया गया। यह निर्णय संस्कृत बोर्ड के निर्देश पर लिया गया था। विभाग का कहना है कि जांच में अनियमितताएं पाई गई थीं, जिसके आधार पर वेतन अटका है।

जांच के बाद होगा निर्णय, DEO कार्यालय कर रहा है समीक्षा

मामला अब जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) कार्यालय में है। अधिकारियों का कहना है कि वेतन का भुगतान केवल जांच रिपोर्ट और बोर्ड के आदेश के आधार पर ही किया जाएगा। लोक शिकायत केंद्र में मामला दर्ज होने के बाद अब DEO कार्यालय द्वारा अंतिम निर्णय लिए जाने की संभावना है।

शिक्षकों के अधिकारों का हनन या विभागीय लापरवाही?

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई शिक्षक कार्य नहीं कर रहा था, तो विभाग को समय पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन बिना स्पष्ट आदेश के तीन दशक तक वेतन रोकना शिक्षक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह विभाग की लापरवाही को उजागर करता है।

सरकारी तंत्र की धीमी प्रक्रिया बनी शिक्षक की पीड़ा का कारण

यह मामला सरकारी दफ्तरों की जटिल और धीमी प्रक्रिया की भी पोल खोलता है, जहां एक आम नागरिक को अपने अधिकारों के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है। अंजू देवी ने सवाल उठाया कि जब उनके पति लगातार आवेदन कर रहे थे, तो विभाग क्यों चुप बैठा रहा?

व्यवस्था में बदलाव की जरूरत, नहीं हो दोहराव ऐसे मामलों का

यह मामला केवल एक शिक्षक की पीड़ा नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है। शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है ताकि किसी शिक्षक को वेतन के लिए अपने जीवन के तीस साल न गंवाने पड़ें।

उम्मीद की एक किरण: क्या मिलेगा अब न्याय?

अब जब मामला सार्वजनिक हो चुका है और लोक शिकायत निवारण केंद्र में दर्ज किया गया है, उम्मीद की जा रही है कि शिवकांत पांडेय को उनका हक मिलेगा और शिक्षा विभाग इस ऐतिहासिक लापरवाही की भरपाई करेगा।

सुधेंद्र प्रताप सिंह

लेखक के बारे में

सुधेंद्र प्रताप सिंह

नवभारत टाइम्स डिजिटल में सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर। पत्रकारिता में लोकल न्यूज पेपर अग्रभारत से सफर की शुरुआत की। यहां से कारवां बढ़ता हुआ कल्पतरू एक्सप्रेस, हिंदुस्तान न्यूज पेपर, न्यूज18 होते हुए एनबीटी.कॉम में पहुंचा। लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश। राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों में रुचि।… और पढ़ें

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