ईरान-इजरायल-अमेरिका युद्ध का भारत पर क्या असर होगा, पाकिस्तान का कद बढ़ेगा? जानें हर सवाल के जवाब

kisded kisdedUncategorized7 hours ago5 Views

नई दिल्लीः बीते कुछ सालों में भारत और इजरायल करीब आए हैं। सेक्योरिटी और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत और इजरायल के बीच गहरा सहयोग देखने को मिला है। साल 2023 के अक्तूबर महीने में हमास के हमले को लेकर भारत ने सख्त शब्दों में प्रतिक्रिया दी थी और साथ ही गाजा में सीजफायर से जुड़े यूएन प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा भी किया था।

भारत का तर्क था कि उस प्रस्ताव में आतंकवाद की कड़ी आलोचना शामिल नहीं थी, भारत के इस रुख को लेकर भारत में विपक्षी दलों ने विरोध भी जताया था। वहीं पहलगाम हमले के बाद इजरायल उन देशों में था जो भारत की आत्मरक्षा के अधिकार के साथ खुलकर सामने आया । लेकिन याद रखने वाली बात ये भी है कि ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत से जुड़े संबंध हैं। भारत और ईरान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, जियोपॉलिटिकल बैलेंस के साथ साथ ऊर्जा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर करीबी सहयोग से जुड़े हैं। ऐसे में हालिया युद्ध के मद्देनजर भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है।

भारत के लिए मध्य एशिया का लिंक है चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट

चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट भारत को अफगानिस्तान, सेंट्रल एशिया और ईरान तक सीधी पहुंच देता है। भारत ने इस प्रोजेक्ट में अच्छा खासा निवेश किया है। चीन की बीआरआई परियोजना के मद्देनजर रूचि और पाकिस्तान की छुपी प्रतिद्वंद्विता की वजह से ये भारत के लिए अहम रणनीतिक प्रोजेक्ट है । सेंट्रल एशिया ना सिर्फ एनर्जी बल्कि रेयर अर्थ मिनरल्स के कारण भी बहुत अहम है। ऐसे में युद्ध कनेक्टिविटी को लेकर भारत की योजना को आघात पहुंचा सकता है। भारत इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को होने वाले संभावित खतरों पर भारत नजर बनाए हुए है । ध्यान रहे कि चाबहार किसी विदेशी बंदरगाह के मैनेजमेंट को लेकर भारत की पहली कोशिश है।

ईरान और इजरायल में हजारों भारतीय मौजूद हैं

इजरायल और ईरान, दोनों देशों में अच्छी खासी तादाद में भारतीय नागरिक मौजूद हैं। अगर हालात बिगड़ते हैं तो भारत को तात्कालिक तौर पर इन लोगों की जान और माल की सुरक्षा की चिंता करनी होगी। भारत ने ऑपरेशन सिंधु के चलते इन देशों से अपने नागरिक निकाले भी हैं। लेकिन अभी भी तादाद बहुत बड़ी है। एक आंकड़े के मुताबिक इजरायल में करीब 18 हजार और ईरान में करीब 10000 भारतीय मौजूद हैं।

भारत के हक में नहीं कमजोर ईरान

ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति में पाकिस्तान को तरजीह मिल रही है। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि चीन पाकिस्तान के क्षेत्रीय गठजोड़ के मद्देनजर ईरान पर हमलों के बाद एक कमजोर ईरान पाकिस्तान की रणनीतिक हैसियत को मजबूत ही करेगा जो कि भारत के हक में नहीं होगा। बीते साल जनवरी में ही ईरान और पाकिस्तान के बीच उस वक्त तनाव देखने को मिला था जब दोनों ने एक दूसरे के आतंकी संगठनों को पनाह देने का आरोप लगाया था। ऐसे में अगर संघर्ष लंबा खींचता है तो साझा सीमा के मद्देनजर अमेरिका के लिए पाकिस्तान का कद बढ़ जाएगा।

विदेश नीति के लिए चुनौती कैसे है?

भारत सरकार कहती रही है कि उसकी विदेश नीति सैद्धांतिक तौर पर गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर ही चलती रही है। जानकार मानते हैं कि दोनों देशों के साथ हितों को देखते हुए भारत की ओर से फिलहाल रणनीतिक स्वायत्तता को महत्व दिया जा रहा है। पीएम मोदी ने भी एक्स पर एक पोस्ट साझा कर बताया कि उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति के साथ फोन पर बात की है। पीएम ने डिएस्कलेशन, डायलॉग और डिप्लोमेसी को तरजीह दी है। दरअसल चाहे रूस यूक्रेन युद्ध हो या फिर इजरायल और हमास का संघर्ष । भारत ने हमेशा डिएस्क्लेशन को महत्व दिया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत की बैलेंस बनाकर चलने वाली ये रणनीति छोटी सीमा के संघर्ष के लिए तो ठीक है,लेकिन लंबे संघर्ष में एक साफ रूख की अपेक्षा की जाती है और उस टेस्ट से भारत को भी गुजरना पड़ेगा।

अल्पयू सिंह

लेखक के बारे में

अल्पयू सिंह

नवभारत टाइम्स के नेशनल ब्यूरो में इंटरनेशनल अफ़ेयर्स, जियोपोलिटिक्स और डिप्लोमेसी कवर करती हैं। इसके अलावा कांग्रेस और आईटी पॉलिसी भी देखती हैं। जब ये नहीं कर रही होती तो पहाड़ों और नेचर के बीच पाई जाती हैं।… और पढ़ें

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