कश्मीर में भारी नाराजगी… पहलगाम आतंकी हमले के बाद क्या होते सही कदम

IO_AdminUncategorized1 month ago34 Views

चंद्रभूषण, नई दिल्ली: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पूरे देश में शोक और आक्रोश की लहर फैली हुई है। कश्मीरियों की मेहमाननवाजी पूरी दुनिया में मशहूर है। यह घटना उनके लिए एक निजी धक्के जैसी भी है। इस साल का टूरिस्ट सीजन अभी कश्मीर में शुरू ही हुआ था। भय है कि माहौल सुधरने में बहुत वक्त लगेगा और कश्मीरियों को इसकी बड़ी आर्थिक चोट भी झेलनी पड़ेगी।

आम कश्मीरी की भावना : खबर आ रही है कि पर्यटकों को सुरक्षित और बिना परेशानी के घर पहुंचाने के लिए लोगों ने अपने ऑटो और टैक्सियां मुफ्त में चलानी शुरू कर दी हैं। आतंकवादियों और उनके प्रायोजक पाकिस्तान के खिलाफ पूरी कश्मीर घाटी में प्रदर्शन हुए हैं। उस भूगोल में यह कितने हौसले का काम है, इसका अंदाजा कश्मीर में थोड़ा समय बिताए बिना नहीं लगाया जा सकता। बहुत अफसोस की बात है कि कश्मीरियों की यह भावना बाकी देश में या तो पहुंच ही नहीं रही है, या उसे तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है।

सोशल मीडिया का रोल : इस प्रस्तुतीकरण के पीछे सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की है। घटना के दिन से ही ऐसे बयान और विडियो हर तरफ छाए हुए हैं, जिनमें बताया जा रहा है कि किसी न किसी रूप में सारे ही कश्मीरी वहां पर्यटकों के जनसंहार की साजिश का हिस्सा हैं। जिन लोगों ने राष्ट्रीय भावना के तहत इस दुखद घटना को सांप्रदायिक रंग न दिए जाने का प्रयास किया, उन्हें सोशल मीडिया पर बुरी तरह टारगेट किया गया है।

हमलावरों का सांप्रदायिक नजरिया : ‘आतंक का कोई धर्म नहीं होता’, यह पूरी दुनिया में स्वीकृत वाक्य है और पूरे समुदाय पर पोचारा पोतने की कोशिशों का सामना इसके ही दम पर किया जाता है। लेकिन भारत में ऐसा कहने वालों को देशद्रोही जैसी श्रेणी में डाल दिया गया है। बाकायदा यह साबित किया जा रहा है कि पहलगाम में हुआ हमला भारतीय पर्यटकों पर नहीं, घाटी में घूमने गए हिंदुओं पर हुआ है! इस क्रम में हमलावरों के सांप्रदायिक दृष्टिकोण को आगे रखकर उनके पाकिस्तान पोषित अलगाववादी नजरिए को एक आड़ सी दे दी जा रही है।

स्वाभिमान पर चोट :
यह बहुत दुखद स्थिति है। कश्मीर घाटी में पाकिस्तान के भावनात्मक प्रभाव को पूरी तरह समाप्त कर देने का यह आदर्श मौका था। आम कश्मीरी इस आतंकी घटना और इसके पीछे मौजूद पाकिस्तानी अजेंडे के पूरी तरह खिलाफ है। इससे उसकी साख पर, उसकी अर्थव्यवस्था पर, उसके स्वाभिमान पर गहरी चोट पहुंची है। लेकिन, बाकी देश में अभी कुछ-कुछ वैसा ही होता दिख रहा है, जैसा पाकिस्तान चाहता होगा कि भारत में हो।

नहीं रही सावधानी : सरकार को इस मामले में शुरू से ही सावधान रहना चाहिए था। ऐसी किसी भी घटना की प्रतिक्रिया कश्मीरी छात्रों और व्यापारियों को न झेलनी पड़े, इसकी स्थायी व्यवस्था उसे करनी चाहिए थी। सोशल मीडिया इसी खतरे का दूसरा आयाम बन गया है। सरकार या सत्तारूढ़ दल से जुड़ा कोई भी व्यक्ति ऐसी कोई पोस्ट न डाले, यह संदेश पूरी सख्ती से दिया जाना चाहिए था।

पाकिस्तान का फायदा : अभी जो दृश्य है, उसमें कश्मीरी अलग-थलग ही किए जाते दिखाई दे रहे हैं। इसमें पाकिस्तान का फायदा जगजाहिर है। नाराज कश्मीरियों को मनाने में वह इसका इस्तेमाल करेगा। भले ही सीमा पर गोलीबारी जारी है, भले ही भारत की फौज किसी नई घुसपैठ को रोकने और पाकिस्तान की तरफ से किसी एडवेंचरस कार्रवाई का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन असली लड़ाई तो राष्ट्र की धारणा और जनता की आत्मछवि के बीच होती है। भारत इस मोर्चे पर लगातार घाटे में ही जा रहा है।

नहीं हुई है देर : कश्मीर और कश्मीरियों को भारत के साथ दूध और चीनी की तरह एक कर देने का यह सही मौका था, जो अभी खत्म नहीं हुआ है। सरकार आज भी इस मामले पर ध्यान देकर हालात को काबू में ला सकती है। जो लोग आतंकवादियों और कश्मीरियों को एक ही साबित करने में जुटे हैं, उन्हें किसी भी सूरत में खुला खेलने का मौका नहीं देना चाहिए। पूरी सख्ती से कहा जाना चाहिए कि भारत की लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है और इस जंग में आम कश्मीरी भी बढ़-चढ़कर उसके साथ हैं।

खास उपाय किए जाएं : पिछले कुछ वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर कश्मीर में काफी काम हुआ है और आम कश्मीरी भी कुछ राहत महसूस कर रहे हैं। ये कोशिशें इस दुखद घटना से तबाह न हो जाएं, इसके लिए देश के जाने पहचाने चेहरों को मीडिया कवरेज के साथ कुछ महीने लगातार सिर्फ पर्यटन के लिए कश्मीर भेजा जाना चाहिए। साथ ही प्रमुख कश्मीरी व्यक्तित्वों के भी देश भर में दौरे कराए जाने चाहिए, ताकि कटुता फैलाने वाले विदेशी अजेंडे के पर कतरे जा सकें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

अशोक उपाध्याय

लेखक के बारे में

अशोक उपाध्याय

“नवभारत टाइम्स डॉट कॉम में सीनियर ड‍िज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर। जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड मैनेजमेंट, नोएडा से 2013 में पासआउट। पत्रकारिता में 10 साल का अनुभव है। साल 2013 में एनबीटी अखबार से पत्रकारिता के सफर की शुरुआत की थी। राजनीति, क्राइम समेत कई बीटों पर काम करने का अनुभव है। अमर उजाला देहरादून में भी सेंट्रल डेस्क पर काम किया। साल 2020 में डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रखा। मीडिया के बदलते स्वरूप के साथ खुद को बदलने का प्रयास जारी है।”… और पढ़ें

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