AdminUncategorized1 month ago18 Views

पेरिस: पाकिस्तान के साथ जंग के हालात के बीच भारत ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों का सोर्स कोड मांगा है। सोर्स कोड हासिल करने के लिए भारत ने अपनी कोशिशें काफी तेज कर दी हैं। indiasentinels की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का मकसद राफेल फाइटर जेट को स्वदेशी रडार, एवियोनिक्स और मिसाइलों से लैस करना है, जिसके लिए सोर्स कोड का होना बहुत जरूरी है। इसके पीछे भारत की कोशिश डिफेंस की दुनिया में आत्मनिर्भरता हासिल करने, ऑपरेशनल स्वतंत्रता बनाए रखने, विदेशी देशों पर अपनी निर्भरता कम करने और डिफेंस टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना है। भारत ने ‘सरकार से सरकार’ सौदे के तहत फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं। फ्रांस सभी राफेल फाइटर जेट्स भारत को सौंप चुका है और ये फाइटर जेट्स अब अंबाला और हासीमारा के ठिकानों से ऑपरेट होते हैं।

हालांकि राफेल लड़ाकू विमान पहले से ही कई भारतीय हथियारों से लैस हैं। भारत ने e Astra Mk1 BVRAAM (beyond-visual-range air-to-air missile) और smart anti-airfield weapon (SAAW) जैसे हथियारों को राफेल में लैस किया है, लेकिन अब कई और स्वदेशी हथियारों को राफेल करने के लिए भारत को सोर्स कोड की जरूरत है। आपको बता दें कि राफेल फाइटर जेट पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान तो नहीं है, लेकिन कई मायनों में ये फिफ्थ जेनरेशन लड़ाकू विमानों को टक्कर देता है। भारत ने इंडियन नेवी के लिए राफेल खरीदने के लिए आज ही फ्रांस के साथ सौदे पर दस्तखत किए हैं।

भारत को फ्रांस से चाहिए राफेल का सोर्स कोड
आपको बता दें कि सोर्स कोड, राफेल फाइटर जेट के एडवांस सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्कैन किए गए सरणी (AESA) रडार और मॉड्यूलर मिशन कंप्यूटर (MMC) को कंट्रोल करता है। ये एक साथ मिलकर विमान की इलेक्ट्रॉनिक रीढ़ बनाते हैं। जब तक ये सोर्स कोड नहीं मिले हैं, तबतक भारतीय वायुसेना को हर नए हथियार के एकीकरण या अपग्रेडेशन के लिए डसॉल्ट पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे डिफेंल की प्लानिंग में तो देरी होती ही है, साथ ही साथ इसकी कीमत में इजाफा होता है, जिससे क्षमता पर असर पड़ता है। फ्रांस ने मिराज-2000 के लिए अभी तक भारत को सोर्स कोड नहीं दिया है, जबकि मिराज 2000 को भारत ने 1980 के दशक में ही फ्रांस से खरीदा था। लिहाजा भारत में बने कई हथियारों को भारत आज तक मिराज-2000 में लैस नहीं कर पाया। जिसे देखते हुए भारतीय वायुसेना इस बार सख्त रूख अपनाए हुए है और उसे हर हाल में राफेल का सोर्स कोड चाहिए।

राफेल फाइटर जेट में भारतीय हथियार प्रणालियों के एकीकरण के लिए एईएसए रडार और एमएमसी में सॉफ्टवेयर संशोधन की जरूरत है। लेकिन सोर्स कोड का मालिकाना हक डसॉल्ट के पास है। ऐसे में अपग्रेडेशन बिना डसॉल्ड की मदद के संभव नहीं है। इंडियन एयरफोर्स का तर्क है कि सोर्स कोड तक भारतीय इंजीनियरों और DRDO के वैज्ञानिकों की पहुंच होनी चाहिए, जिससे ना सिर्फ लागत कम होगी, बल्कि भारतीय वायुसेना का ऑपरेशन भी आसान होगा।

सोर्स कोड देने से फ्रांस की आनाकानी क्यों?
डसॉल्ट एविएशन और उसके साझेदार थेल्स, राफेल लड़ाकू विमानों के सोर्स कोड को लेकर बेहद सतर्क हैं। उनका मानना है कि सालों की मेहनत, रिसर्च और निवेश के बाद उन्होंने इसे डेवलप किया है। सोर्स कोड को वो महत्वपूर्ण बौद्धिक संपदा मानते हैं। उनका कहना है कि अगर सोर्स कोड को शेयर किया जाता है तो इससे उन्हें गहरा कॉमर्शियल नुकसान होगा। जिससे वैश्विक स्तर पर राफेल की रणनीतिक बढ़त कमजोर हो सकती है। इसके अलावा भारत के साथ जो डील हुआ था, उसमें भारत को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गये थे, जैसे हेलमेट-माउंटेड डिस्प्ले और चुनिंदा भारतीय हथियारों का एकीकरण, लेकिन इसमें रडार या एवियोनिक्स के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रावधान नहीं था। फ्रांसीसी अधिकारियों ने लगातार कहा है कि तीसरे पक्ष को संशोधन या सोर्स कोड शेयर करने की अनुमति देने से न सिर्फ उनके वाणिज्यिक हित प्रभावित होंगे, बल्कि राफेल खरीदने वाले दूसरे देश भी सोर्स कोड की मांग कर सकते हैं।

अभिजात शेखर आजाद

लेखक के बारे में

अभिजात शेखर आजाद

अभिजात शेखर आजाद, बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की है और पिछले 15 सालों से ज्यादा वक्त से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। ज़ी मीडिया समेत कई नामी संस्थानों काम कर चुके हैं। जियो-पॉलिटिक्स और डिफेंस सेक्टर में काम करने का लंबा अनुभव है। NBT में दुनिया डेस्क पर कार्यरत हैं और इंटरनेशनल पॉलिटिक्स और डिफेंस सेक्टर पर लिखते हैं।… और पढ़ें

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