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तेहरान/तेल अवीव: ईरान ने 23 जून को जब कतर में अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइलों की बारिश की तो कई अरब देशों की जान हलक में अटक गई। सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश काफी डर गये। ये वो देश हैं, जो पहले हर हाल में ईरान के परमाणु कार्यक्रम का खात्मा चाहते थे। सऊदी अरब के प्रधानमंत्री प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान तो अमेरिकी चैनल को दिए गये एक इंटरव्यू में यहां तक कह चुके हैं कि अगर ईरान परमाणु हथियार बना लेता है तो सऊदी अरब को भी मजबूरन न्यूक्लियर हथियार बनाने होंगे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। कतर में अमेरिकी एयरबेस पर ईरान के मिसाइल हमलों को अमेरिकी एयर डिफेंस सिस्टम्स ने रोक लिया और कोई नुकसान नहीं पहुंचा। हालांकि ईरान ने एक घंटे पहले ही अमेरिका और कतर को अपने हमले की जानकारी दे दी थी।

अमेरिका ने जब 22 जून को ईरान के तीन परमाणु स्थलों इस्फहान, फोर्डो और नतांज में हमले किए थे तो सऊदी अरब के साथ साथ यूएई, बहरीन और ओमान ने भी इसे ‘ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन’ करार दिया। बहरीन ने चेतावनी दी कि यदि हालात काबू में नहीं आए तो पूरा क्षेत्र “युद्ध की विभीषिका” में फंस सकता है। ये वो देश हैं, जो एक वक्त ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बलपूर्वक खत्म करने की नीति का समर्थन करते थे। लेकिन अब ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच लंबे समय से राजनयिक मध्यस्थ रहे ओमान ने कहा कि “संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाई संघर्ष के दायरे को बढ़ाने की धमकी देती है और अंतर्राष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन करती है।”

ईरान को लेकर अरब देशों का ‘हृदय परिवर्तन’
परमाणु स्थलों पर हमले के बाद ईरान ने मिडिल ईस्ट में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर अमेरिकी हमलों का बदला लेने की कई बार धमकी दी, जिसमें यूएई, सऊदी अरब, कतर और ओमान के साथ-साथ इराक और जॉर्डन में मौजूद एयरबेस शामिल हैं। बहरीन, जो अमेरिकी नौसेना के 5वें बेड़े का घर है और जहां करीब 8200 यूएस मरीन के जवान रहते हैं, वो ईरान के हमलों की आशंका से बुरी तरह डरा हुआ था। यह छोटा सा देश अपने पड़ोसियों में से एकमात्र ऐसा देश है, जिसके ईरान के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं, जो सीधे फारस की खाड़ी के पार स्थित है। इन अमीर अरब देशों ने चेतावनी दी है कि संघर्ष के विस्तार से तेल उत्पादन बाधित हो सकता है, रणनीतिक होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से शिपमेंट ब्लॉक हो सकता है और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को नुकसान हो सकता है। ईरान ने होर्मुज को ब्लॉक करने की धमकी दी थी, लेकिन वैसा किया नहीं।

लंदन में चैथम हाउस के रिसर्चर रेनाड मंसूर ने वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा है कि “खाड़ी में बड़े पैमाने पर कारोबार फर्स्ट की मानसिकता है, और अस्थिरता व्यापार के लिए बुरी है।” उन्होंने कहा कि “यह अब एक वास्तविक युद्ध है। मुझे नहीं लगता कि बहुत से लोग जानते हैं कि जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो हम कहां पहुंचेंगे।” जबकि अतीत में खाड़ी देशों की सरकारें ईरान को कंट्रोल करने को लेकर हुए समझौते के खिलाफ थीं। सऊदी अरब और यूएई दोनों ने 2015 में ईरान और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते का विरोध किया था और जब 2018 में डोनाल्ड ट्रंप समझौते से बाहर आ गये तो इन देशों ने फैसले का स्वागत करते हुए खुशी मनाई थी।

Iran-Israel War.

अरब देशों में ईरानी हमलों का था डर
साल 2019 में सऊदी अरब की तेल सुविधाओं पर हुए हमलों ने खाड़ी देशों की नींद हराम कर दी थी और इस बार भी उन्हें लग रहा था कि कहीं ईरानी मिसाइलों का निशाना उनकी तरफ ना हो। ऐसे में वो डरे थे कि ईरान के साथ खुला संघर्ष उनका आर्थिक और सुरक्षा संतुलन बिगाड़ सकता है। अरब देशों ने पिछले 5-6 सालों से ईरान के साथ बातचीत का रास्ता अपनाया है। 2023 में सऊदी अरब ने ईरान के साथ फिर से राजनयिक संबंध बहाल किए, जबकि यूएई ने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध बना लिए। वहीं चीन की मध्यस्थता में अब सऊदी अरब और ईरान के संबंध भी सामान्य हो चुके हैं, लेकिन ताजा संघर्ष से सऊदी डरा हुआ था।

कतर पर ईरानी हमले के फौरन बाद बहरीन सरकार ने 70% सरकारी कर्मचारियों को घर से काम करने का आदेश दे दिया, ताकि सड़कें खाली रहें और आपातकालीन वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित हो सके। कुवैत के वित्त मंत्रालय ने “किसी भी स्थिति” में कामकाज जारी रखने के लिए आपात योजना सक्रिय कर दी। जॉर्डन में ईरानी मिसाइलों को आसमान में उड़ते देख सेना हाई अलर्ट पर चली गई। एयर रेड सायरन बजने लगे, पर्यटक देश छोड़ने लगे और राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने तुरंत आपात सुरक्षा बैठक बुलाई। ईरान-इज़रायल टकराव, गाजा युद्ध, सीरिया संकट, यमन संघर्ष और अब अमेरिकी हस्तक्षेप, ये सब मिलकर अरब दुनिया के सामने एक नए ‘सातवें युद्ध’ की आशंका पैदा कर चुके हैं।

Israel and Iran accept ceasefire.

चाथम हाउस, लंदन के रिसर्चर रेनाड मंसूर ने कहा कि “अब यह असली युद्ध बन चुका है। कोई नहीं जानता कि इसका अंत कहां होगा।” इसलिए खाड़ी देश अब अमेरिका और इजरायल दोनों से संयम की अपील कर रहे हैं और शांति पर जोर दे रहे हैं। आपको बता दें कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बेल्फर सेंटर के प्रमुख अमीराती राजनीतिक विश्लेषक अब्दुलखालिक अब्दुल्ला ने ‘ईरान-इजरायल युद्ध’ को सांतवां युद्ध कहा है। जिसका मतलब ईरान-इराक युद्ध (1980–1988), खाड़ी युद्ध – 1 (1990–91), खाड़ी युद्ध – 2 इराक युद्ध (2003–2011), सीरिया युद्ध (2011–अब तक), यमन युद्ध (2014–अब तक), गाजा-इज़राइल युद्ध (2023–2024) और अब ईरान–इजरायल–अमेरिका टकराव (2025) से है।

अभिजात शेखर आजाद

लेखक के बारे में

अभिजात शेखर आजाद

अभिजात शेखर आजाद, बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की है और पिछले 15 सालों से ज्यादा वक्त से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। ज़ी मीडिया समेत कई नामी संस्थानों काम कर चुके हैं। जियो-पॉलिटिक्स और डिफेंस सेक्टर में काम करने का लंबा अनुभव है। NBT में दुनिया डेस्क पर कार्यरत हैं और इंटरनेशनल पॉलिटिक्स और डिफेंस सेक्टर पर लिखते हैं।… और पढ़ें

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