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‘अगर संविधान में किसी भी शब्द को छुआ…’: प्रस्तावना में बदलाव की मांग पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की चेतावनी

Written by: अंजन कुमार|नवभारतटाइम्स.कॉम

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबाले के संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने के विचार का विरोध किया है।

Congress President Mallikarjun Kharge said on demand for change in preamble Will fight tooth and nail.
मल्लिकार्जुन खरगे

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोमवार को कहा कि अगर संविधान में कोई भी शब्द बदला गया तो उनकी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करेगी। उन्होंने यह बात आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के उस बयान पर कही, जिसमें उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में ‘ समाजवादी ‘ और ‘ धर्मनिरपेक्ष ‘ शब्दों की समीक्षा करने का विचार रखा था। खरगे ने बेंगलुरु में अपने आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए होसबाले को ‘मनुस्मृति का आदमी’ बताया। उन्होंने कहा कि होसबाले नहीं चाहते कि गरीब लोग आगे बढ़ें और वे चाहते हैं कि हजारों साल पहले जो प्रथाएं थीं, वही जारी रहें। इसलिए उन्हें समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा पसंद नहीं है। खरगे के अनुसार, यह केवल होसबाले की राय नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी राय है।

आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबाले ने क्या कहा है

हाल ही में इमरजेंसी पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबाले ने कहा था कि ‘बाबा साहेब अंबेडकर ने जो संविधान बनाया था, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द (समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता)नहीं थे। उन्होंने कहा कि ‘इमरजेंसी के दौरान, जब मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, संसद ने काम नहीं किया, और न्यायपालिका कमजोर हो गई, तब इन शब्दों को जोड़ा गया।’ RSS नेता ने कहा कि बाद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन उन्हें प्रस्तावना से हटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए।’

‘संविधान में कोई शब्द बदला तो पूरजोर विरोध करेंगे’

मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया, ‘RSS हमेशा गरीब लोगों, दलितों और अनुसूचित जाति और अन्य समुदायों के खिलाफ है। अगर वे इतने इच्छुक हैं, तो वे अस्पृश्यता को हटा सकते थे। वे दावा करते हैं कि वे हिंदू धर्म के चैंपियन हैं। यदि वे ऐसा हैं, तो उन्हें अस्पृश्यता को दूर करना चाहिए।’ राज्यसभा में विपक्ष के नेता ने यह भी कहा कि RSS को अपने सभी स्वयंसेवकों को यह सुनिश्चित करने के लिए तैनात करना चाहिए कि अस्पृश्यता को दूर किया जाए और देश को एकजुट रखा जाए। खरगे ने कहा, ‘इसके बजाय, केवल बात करना, शोर मचाना और देश में भ्रम पैदा करना बहुत बुरा है, और हम इसके खिलाफ हैं। अगर संविधान में कोई भी शब्द बदला गया तो पार्टी इसका पुरजोर विरोध करेगी।’

प्रस्तावना में कहां से आए ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’

हालांकि, आरएसएस के इस विचार पर केंद्र सरकार के मंत्रियों की ओर से भी सकारात्मक संकेत मिले हैं। दरअसल, मूल संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्द नहीं थे, जो कि मौजूदा राजनीति के सबसे प्रभावशाली शब्द बन चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से ये दोनों शब्द प्रस्तावना में डाल दिए गए। यह मुद्दा तभी से विवाद का विषय रहा है कि अगर ये शब्द इतने जरूरी होते तो संविधान निर्माताओं ने इन्हें अहमियत देने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की थी। (पीटीआई इनपुट के साथ)

अंजन कुमार

लेखक के बारे मेंअंजन कुमारअंजन कुमार बीते 23 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। आपने जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई की है। आप डेढ़ दशकों तक टीवी पत्रकारिता में सेवाएं देने के बाद से डिजिटल मीडिया में कार्यरत हैं। राजनीति और सम-सामयिक विषयों पर विश्लेषणात्मक लेख लिखने में आपकी खास रुचि है। जुडिशरी से जुड़े विषय भी आपका पसंदीदा क्षेत्र है। बिजनेस, इंटरनेशनल और डिफेंस जैसे विषयों पर भी विशेष लेख लिखने में आपकी दिलचस्पी है।… और पढ़ें

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