IO_AdminUncategorized2 months ago25 Views

ग्वालियर: मध्य प्रदेश में मंत्री ऐदल सिंह कंसाना के विवादास्पद बयान ने एक गंभीर बहस छेड़ दी है। मंत्री ने रेत माफिया को ‘पेट माफिया’ बताया था। इस बयान से सरकार की गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं। हाल के वर्षों में रेत माफिया की हिंसक गतिविधियां बढ़ी हैं। माफिया सरकारी कर्मचारियों पर हमले कर रहे हैं। वे अवैध खनन में लिप्त हैं। मंत्री के बयान को माफिया की हिंसक गतिविधियों को कम आंकने वाला माना जा रहा है।

आंकड़े दे रहे गवाही

पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश में रेत माफिया की गुंडागर्दी बढ़ गई है। 2024 और 2025 में कई ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिनमें माफिया ने खुलेआम कानून को तोड़ा है। हाल ही में मुरैना में एक और ऐसी घटना हुई। वन विभाग की टीम ने रेत से भरे एक ट्रैक्टर को पकड़ा। माफिया के लोगों ने ट्रैक्टर को छुड़ा लिया। उन्होंने अधिकारियों को धमकी भी दी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे सरकार की कमजोरी उजागर हुई।

पहले भी सामने आ चुके ऐसे मामले

  • शहडोल में मई 2024 में एक दुखद घटना हुई। सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) महेंद्र बागरी को रेत से भरे ट्रैक्टर ने कुचल दिया। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इस घटना से पता चलता है कि माफिया कितने बेखौफ हैं।

  • शहडोल में ही नवंबर 2023 में एक और घटना हुई थी। पटवारी प्रशन्न सिंह को भी रेत माफिया ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला था। यह छह महीने में दूसरी घटना थी।

  • शाजापुर में 2023 में एक महिला खनन निरीक्षक और होमगार्ड्स पर हमला हुआ था। माफिया ने उनके साथ मारपीट की थी। इन घटनाओं से पता चलता है कि रेत माफिया सिर्फ अवैध खनन नहीं कर रहा है। वे सरकारी कर्मचारियों पर हमला करके अपनी ताकत दिखा रहे हैं।

क्या था मंत्री कंसाना का बयान

21 मार्च 2025 को कृषि मंत्री ऐदल सिंह कंसाना ने एक बयान दिया। यह बयान मुरैना की घटना के बाद आया था। उन्होंने कहा, ‘कहां है माफिया? रेत माफिया नहीं, ये पेट माफिया हैं। ये लोग अपनी आजीविका के लिए काम कर रहे हैं।’ मंत्री के इस बयान का मतलब तो यही निकलता है कि माफिया कोई संगठित गिरोह नहीं है। बल्कि, कुछ गरीब लोग हैं जो मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं।

सरकार की गंभीरता पर उठ रहे सवाल

मंत्री के बयान का एक अच्छा पहलू देखें तो उन्होंने यह माना कि कुछ लोग गरीबी और बेरोजगारी के कारण अवैध खनन में शामिल हैं। लेकिन इस बयान का एक बुरा पहलू भी है। यह हिंसा और संगठित अपराध को कम करके आंकता है। ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या करना या अधिकारियों पर हमला करना सिर्फ ‘पेट भरने’ की मजबूरी नहीं है। यह एक सोची-समझी साजिश है। इससे सरकार की गंभीरता पर सवाल उठते हैं।

क्या ये वाकई में ‘पेट माफिया’ हैं?

रेत माफिया के पास ट्रैक्टर, जेसीबी, हथियार और स्थानीय लोगों का समर्थन है। ये घटनाएं किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं की जा रही हैं। बल्कि, यह एक संगठित गिरोह का काम है। शहडोल और मुरैना की घटनाएं दिखाती हैं कि ये लोग हिंसक हैं। उनके पास योजना बनाने और उसे अंजाम देने के लिए साधन भी हैं।

करोडों का है रेत का कारोबार

रेत का अवैध कारोबार करोड़ों रुपये का है। एक ट्रक रेत से 10,000 से 30,000 रुपये तक की कमाई होती है। यह सिर्फ ‘पेट भरने’ का काम नहीं है। यह एक बड़ा व्यवसाय है। इसमें होने वाला मुनाफा माफिया और उनके साथियों के बीच बंटता है।

स्थानीय नेताओं और अधिकारियों का भी संरंक्षण

मीडिया रिपोर्ट्स और विपक्षी दलों के आरोपों से पता चलता है कि माफिया को स्थानीय नेताओं और अधिकारियों का समर्थन मिलता है। इससे ‘पेट माफिया’ वाली बात कमजोर पड़ जाती है। क्योंकि इसमें पावर और प्रभाव का खेल शामिल है।

आकाश सिकरवार

लेखक के बारे में

आकाश सिकरवार

नवभारत टाइम्स डिजिटल के लिए मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की खबरों पर नज़र रखता हूं. इससे पहले पंजाब केसरी, हिंदुस्थान समाचार और सारांश टाइम्स में बतौर सब एडिटर काम कर चुका हूं. किताबें पढ़ता हूं, घूमता हूं और सीखने में यकीन रखता हूं.… और पढ़ें

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