– शिक्षण संस्थानों और कोचिंग सेंटर्स में योग्य काउंसलर नियुक्त किए जाएं।
– शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर बैच विभाजन से बचा जाए।
– कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य पर विशेषज्ञों द्वारा साल में दो बार अनिवार्य ट्रेनिंग दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सुझाव भारतीय शिक्षा प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर एक आवश्यक पुनर्विचार प्रस्तुत करते हैं। तनावपूर्ण परीक्षाएं, सामाजिक प्रतिस्पर्धा और संस्थागत असंवेदनशीलता जैसे मुद्दे सीधे तौर पर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ावा दे रहे हैं।
भारत लगातार छात्रों की आत्महत्या दरों में चिंताजनक वृद्धि देख रहा है-एक ऐसा संकेत जो न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि देश की भविष्य पीढ़ी दोनों ही प्रभावित करता है। NCRB डेटा स्पष्ट रूप से शिक्षा प्रणाली द्वारा बनाए गए अत्यधिक दबाव और इसकी विफलताओं को उजागर करता है।
मनोवैज्ञानिक समर्थन तंत्र विकसित करना शिक्षण संस्थानों के भीतर एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है जिससे विद्यार्थी अपने अध्ययन काल में सुरक्षित महसूस कर सकें। हालाँकि, इसका प्रभावशील कार्यान्वयन प्रमुख चुनौती होगी-विशेषकर बड़े पैमाने पर फैले निजी कोचिंग केंद्रों तक पहुंच बनाना।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए बहुआयामी दृष्टिकोण सामूहिक कार्रवाई और राजनीतिक इच्छाशक्ति मांगते हैं ताकि ना केवल आंकड़ों बल्कि वास्तविक जीवन संभावनाओं को सुधारने वाले कदम उठाए जा सकें।