स्पेशल फोर्सेज की कोवर्ट युद्ध क्षमताओं को बढ़ा रहा भारत, जानें कैसी है प्लानिंग

AdminUncategorized2 months ago40 Views

नई दिल्ली: भारत अपनी स्पेशल फोर्सेज को पहले से ज्यादा मजबूत कर रहा है। ये फोर्सेज दुश्मन के इलाके में छिपकर हमला कर सकती हैं और आतंकवाद से भी निपट सकती हैं। सेना, वायुसेना और नौसेना की इन खास टीमों को नई तकनीक और ट्रेनिंग दी जा रही है। इसमें छोटी सबमरीन, हवा में उड़ने वाले हथियार, नैनो ड्रोन और खास संचार उपकरण शामिल हैं।

नई तकनीक से ट्रेनिंग और ताकत में इजाफा

स्पेशल फोर्सेज को भविष्य में ‘ऑगमेंटेड रियलिटी’ और ‘वर्चुअल रियलिटी’ से ट्रेनिंग मिलेगी। अभी एक स्पेशल ऑपरेशंस कमांड नहीं है, लेकिन Armed Forces Special Operations Division (AFSOD) ने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाया है। नई तकनीक से अब लंबी दूरी तक बिना रुकावट बात हो सकती है। इसके लिए सैटेलाइट और खास रेडियो का इस्तेमाल हो रहा है।

कितने जवान और कितनी ताकत?

सेना में 10 पैरा-स्पेशल फोर्सेज और 5 पैरा (एयरबोर्न) बटालियन हैं, हर बटालियन में 620 जवान हैं। वायुसेना के पास 1,600 गरुड़ कमांडो की 27 टीमें हैं। नौसेना में 1,400 से ज्यादा मरीन कमांडो (Marcos) हैं। हालांकि, तीनों सेनाओं को एक साथ जोड़ने वाला कमांड अभी नहीं बना, लेकिन AFSOD इस कमी को पूरा कर रहा है।

खास हथियारों का जखीरा

स्पेशल फोर्सेज के पास पहले से ही शानदार हथियार हैं। इनमें फिनलैंड की स्नाइपर राइफल, अमेरिका की M4A1 कार्बाइन, इजराइल की TAR-21 राइफल, स्वीडन का रॉकेट लॉन्चर, रूस की साइलेंट स्नाइपर और इटली की साइलेंसर वाली पिस्तौल शामिल हैं। ये हथियार उन्हें दुश्मन पर सटीक हमला करने में मदद करते हैं।

नई ताकत: ड्रोन और सटीक हमले

एक सूत्र ने बताया कि ‘लोइटर म्यूनिशन सिस्टम’ से पैरा-एसएफ की निशानेबाजी बेहतर हुई है। इसके अलावा, रिमोट ड्रोन, नैनो ड्रोन, निगरानी हेलिकॉप्टर और FLIR ड्रोन भी दिए गए हैं, जो 10 किलोमीटर तक नजर रख सकते हैं। इससे दुश्मन को चकमा देना आसान हो गया है। दुश्मन के इलाके में घुसने के लिए स्वदेशी ‘कॉम्बैट फ्री-फॉल पैराशूट’ का इस्तेमाल हो रहा है। नए डाइविंग किट और ‘गाइडेड एरियल डिलीवरी सिस्टम’ भी आए हैं, जिससे कमांडो लंबे समय तक अकेले काम कर सकते हैं। ये तकनीक उन्हें गुप्त मिशन में मदद करती है।

भारतीय नौसेना का पास समंदर के जांबाज

नौसेना के Marcos पानी में माहिर हैं। उनके पास छोटी सबमरीन, पानी के नीचे स्कूटर, रिमोट वाहन, डाइविंग उपकरण और रबर की नावें हैं। ये चीजें उन्हें पानी में दुश्मन से लड़ने और विस्फोटक हटाने में सक्षम बनाती हैं।

स्पेशल फोर्स के जवानों को मिलती है कड़ी ट्रेनिंग

स्पेशल फोर्सेज में भर्ती के लिए बहुत कठिन ट्रेनिंग होती है, जिसमें 70-80% लोग फेल हो जाते हैं। इसमें सर्जिकल स्ट्राइक, हिट-एंड-रन, निगरानी, खुफिया जानकारी और गुप्त ऑपरेशन की ट्रेनिंग दी जाती है। जवान शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किए जाते हैं। हिमाचल के बकलोह में स्पेशल फोर्सेज ट्रेनिंग स्कूल में वर्टिकल विंड टनल शुरू हुआ है। यह ‘कॉम्बैट फ्रीफॉल’ की ट्रेनिंग में मदद करेगा। सिमुलेटर का इस्तेमाल बढ़ रहा है और जल्द ही AI-आधारित सिस्टम भी आएंगे, जिससे ट्रेनिंग और बेहतर होगी।

सूत्रों का कहना है कि AI सिस्टम से ट्रेनिंग असली जैसी और सस्ती होगी। इससे स्पेशल फोर्सेज और भी ताकतवर बनेंगी। भारत का लक्ष्य है कि उसकी खास टीमें किसी भी हालात में दुश्मन को मात दे सकें।

अनुभव शाक्य

लेखक के बारे में

अनुभव शाक्य

2021 में IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करके ज़ी न्यूज से पत्रकारिता में एंट्री की। यूपी के एटा में जन्म लिया लेकिन पढ़ाई-लिखाई अलीगढ़ में हुई। करीब डेढ़ साल वहां देश-दुनिया की खबरें लिखने के बाद अब नवभारत टाइम्स में न्यूज टीम में काम कर रहे हैं। राजनीति, टेक्नोलॉजी और फीचर में रुचि रखने के साथ-साथ लिखने पढ़ने के शौकीन हैं। फिल्में और वेबसीरीज देखना खूब भाता है। अपने अंदाज में लिखना और बात करना पसंद है।… और पढ़ें

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