इंडियन नेवी को मिलने वाले रफाल, फ्रांस नेवी के रफाल से कैसे होंगे अलग?

AdminUncategorized1 month ago40 Views

नई दिल्ली : इंडियन नेवी के लिए फ्रांस से रफाल-एम (मरीन) फाइटर जेट लिए जाने हैं, जिसकी डील जल्द ही साइन हो सकती है। फ्रांस की नेवी भी रफाल-एम का इस्तेमाल करती है। लेकिन इंडियन नेवी को जो रफाल-एम मिलेंगे वे फ्रांस की नेवी से अलग होंगे।

क्या अलग होगा नेवी के रफाल में

नेवी रफाल-एम का इस्तेमाल एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य और विक्रांत से करेगी। इसलिए इसकी जरूरत के हिसाब से ही रफाल में बदलाव किए जाएंगे। इंडियन नेवी के एयरक्राफ्ट कैरियर और फ्रांस के एयरक्राफ्ट कैरियर के सिस्टम में फर्क है। एयरक्राफ्ट कैरियर से रफाल किस तरह टेकऑफ करेगा, ये सिस्टम दोनों देशों के एयरक्राफ्ट कैरियर में अलग अलग है। इंडियन नेवी के दोनों एयरक्राफ्ट कैरियर में स्टोबार सिस्टम है। स्टोबार मतबल शॉर्ट टेकऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी।

इसमें डेक का आगे का हिस्सा उठा हुआ होता है। इसे स्की जंप कहते हैं। इससे जब एयरक्राफ्ट डेक छोड़ता है तो यह ऊपर की तरफ जंप करता है इससे एयरक्राफ्ट को शुरू में हाइट लेने में मदद मिलती है फिर एयरक्राफ्ट का इंजन जरूरी फोर्स पैदा कर देता है और एयरक्राफ्ट आराम से टेकऑफ हो जाता है। दूसरा सिस्टम है कैटोबार। इसका मतलब है कैटापुल्ट असिस्टेड टेक ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी। फ्रांस के एयरक्राफ्ट कैरियर में यह सिस्टम है। इसमें कैरियर का डेक पूरा फ्लैट होता है।

स्वदेशी हथियार भी होंगे इंटीग्रेट

इंडियन नेवी को मिलने वाले रफाल-एम में स्वदेशी कंटेंट भी बढ़ाया जाएगा। इसके कुछ पार्ट भारत में ही बनेंगे। रफाल बनाने वाली कंपनी एमआरओ (मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल) फैसिलिटी भारत में ही लगाएगी, इसमें इंजन के मेंटेनेंस की फैसिलिटी भी होगी। नेवी के लिए रफाल-एम में दूसरे वेपन के साथ ही स्वदेशी मिसाइल अस्त्र को भी इंटीग्रेट किया जाएगा।

नेवी के फाइटर जेट, एयरफोर्स से अलग

नेवी के फाइटर जेट एयरफोर्स के जेट से अलग होते हैं क्योंकि नेवी के फाइटर जेट को एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक से ऑपरेट करना होता है। यानी कोई लंबा रनवे नहीं होता। मरीन फाइटर जेट की लाइफ रेगुलर फाइटर जेट से कम होती है क्योंकि लैंडिंग के वक्त इसकी स्पीड बहुत ज्यादा होती है और इससे फ्रेम पर जोर पड़ता है, जो इसकी लाइफ को कम करता है। एयरक्राफ्ट कैरियर में फाइटर जेट की लैंडिंग अरेस्टेड रिकवरी से होती है। इसमें फ्लाइट डेक के रनवे के बीच तीन या चार मोटी वायर होती हैं जो अरेस्टिंग गेयर सिस्टम से जुड़ी होती है। जब एयरक्राफ्ट लैंड करता है तो वह इन वायर में से किसी में एयरक्राफ्ट के नीचे लगे हुक को फंसाता है।

हुक फंसने के साथ ही यह सिस्टम काम करने लगता है और रिवर्स घूमता है जिससे एयरक्राफ्ट की स्पीड कम हो जाती है और वह एयरक्राफ्ट कैरियर के छोटे रनवे पर लैंड कर जाता है। अगर इसमें से किसी भी वायर पर हुक नहीं फंस पाता तो फिर से एयरक्राफ्ट को हवा में चक्कर लगाकर दोबारा लैंडिंग की कोशिश करनी होती है। इसलिए उसकी स्पीड लैंडिंग के वक्त भी उतनी ही होती है जितनी टेकऑफ के वक्त। नेवी के पास अभी एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट करने के लिए मिग-29K हैं।

पूनम पाण्डे

लेखक के बारे में

पूनम पाण्डे

पूनम पाण्डे नवभारत टाइम्स में डिप्टी चीफ ऑफ ब्यूरो हैं। वह बीजेपी, आरएसएस, डिफेंस और आर्म्ड फोर्सेस से जुड़े मामले कवर करती हैं।… और पढ़ें

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