पिता की आखिरी ख्वाहिश… और एक महिला जासूस ने बदली 1971 की जंग, देशभक्ति की दिलचस्प कहानी

AdminUncategorized4 weeks ago45 Views

नई दिल्ली: यह कहानी शुरू होती है साल 1969 से। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही जम्मू-कश्मीर की एक छात्रा को उसके पिता ने अचानक घर बुला लिया। पिता की आखिरी ख्वाहिश थी कि वह अपनी बेटी को देश की सेवा के लिए तैयार करें। पिता के देशभक्ति के जज्बे को वह लड़की टाल नहीं सकी। यही लड़की आगे चलकर ‘सहमत’ नाम से मशहूर हुई। पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है, तब सहमत की कहानी याद आती है, जिन्होंने 1971 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।

पिता भी जासूस: हरिंदर सिंह सिक्का के उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ के अनुसार, सहमत के पिता भारत की खुफिया एजेंसी R&AW के लिए काम करते थे। व्यापार के चलते सीमा पार तक उनकी जान-पहचान थी। इसी की बदौलत 1965 की लड़ाई में उन्होंने पाकिस्तान से कई महत्वपूर्ण संदेश हासिल किए और भारतीय एजेंसी तक पहुंचाया। उन्हें कैंसर था और बीमारी उस स्टेज पर पहुंच चुकी थी, जहां इलाज संभव नहीं था। वह चाहते थे कि उनके बाद उनकी बेटी देश के लिए काम करे।

पाकिस्तान में शादी: उस समय केवल 20 साल की सहमत ग्रैजुएशन करने के साथ-साथ शास्त्रीय नृत्य और वायलिन वादन भी सीख रही थीं। पिता के कहने पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ी और जासूस बन गईं। उनको एक मिशन पर पाकिस्तान भेजा गया। उन्हें पता लगाना था कि पाकिस्तानी सेना के टॉप ऑफिसर्स के बीच क्या योजनाएं बन रही हैं। इस मिशन के लिए सहमत को पाकिस्तानी सेना के अफसर इकबाल सैयद से शादी करनी पड़ी। इकबाल के पिता ब्रिगेडियर परवेज सैयद भी सेना में सीनियर ऑफिसर थे। सहमत से कहा गया था कि उन्हें सेना के अधिकारियों की बातें सुननी हैं। उन्हें Morse code के जरिए इमरजेंसी मेसेज भेजने और रिसीव करने की बेसिक ट्रेनिंग भी दी गई।

सेना में पैठ: सहमत ने केवल ससुराल के लोगों का ही नहीं, आर्मी क्वॉर्टर में रहने वाले दूसरे परिवारों का भरोसा भी जीत लिया। म्यूजिक और डांस की उनकी कला काम आ गई। वह आर्मी स्कूल में बच्चों को ट्रेनिंग देने लगीं। इस स्कूल में जनरल याह्या खान के पोते-पोतियों के साथ ही पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अधिकारियों के बच्चे भी पढ़ते थे। धीरे-धीरे सहमत ने पाकिस्तानी रक्षा क्षेत्र और खुफिया हलकों तक पहुंच बना ली। उनकी वजह से उनके ससुर ब्रिगेडियर परवेज सैयद को भी प्रमोशन का फायदा मिला।

गाजी का खात्मा: इस बीच, 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध लगभग तय हो चुका था। उस समय भारत के पास स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत था। पाकिस्तान पर भारत की जीत और बांग्लादेश की आजादी में यह कैरियर रणनीतिक रूप से बेहद अहम साबित हुआ था। हालांकि पाकिस्तान को इसका अहसास था और उसने तब बंगाल की खाड़ी में तैनात भारतीय युद्धपोत को निशाना बनाने की योजना बनाई। पाकिस्तान ने मिसाइलों से लैस अपनी पनडुब्बी PNS गाजी को भारतीय युद्धपोत को डुबोने का मिशन सौंपा। सहमत को इसकी जानकारी हो गई। उन्होंने PNS गाजी की पोजिशनिंग से जुड़ी जानकारी भारत भेजी और भारतीय नौसेना ने तुरंत एक्शन लेते हुए विशाखापत्तनम बंदरगाह के पास पाकिस्तानी पनडुब्बी को डुबो दिया। उसमें सवार सभी लोग मारे गए।

वतन वापसी: सैयद परिवार के एक करीबी सहयोगी अब्दुल को सहमत पर शक हो गया था। सहमत ने उसे ट्रक से कुचल कर मार डाला। सहमत के पति इकबाल को भी असलियत पता चल गई थी। सहमत के हैंडलर्स ने उसे भी खत्म कर दिया। वह गर्भवती थीं, और तब उनकी भारत में सुरक्षित वापसी हुई। इसके बाद का जीवन उन्होंने पंजाब के मलेरकोटला में बिताने का फैसला किया। डीयू में जिस लड़के से उन्हें पहला प्यार हुआ था, वह अब भी उनका इंतजार कर रहा था। लेकिन, दिल पर खून का बोझ लिए सहमत तैयार नहीं हुईं। उस लड़के ने फिर सहमत के बेटे को पाला, जो आगे चलकर खुद फौजी अफसर बना। 2018 में सहमत की मौत हुई और उनकी असली पहचान आज तक गुप्त रखी गई है ताकि उनके बेटे पर खतरा न आए।

अशोक उपाध्याय

लेखक के बारे में

अशोक उपाध्याय

“नवभारत टाइम्स डॉट कॉम में सीनियर ड‍िज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर। जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड मैनेजमेंट, नोएडा से 2013 में पासआउट। पत्रकारिता में 10 साल का अनुभव है। साल 2013 में एनबीटी अखबार से पत्रकारिता के सफर की शुरुआत की थी। राजनीति, क्राइम समेत कई बीटों पर काम करने का अनुभव है। अमर उजाला देहरादून में भी सेंट्रल डेस्क पर काम किया। साल 2020 में डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रखा। मीडिया के बदलते स्वरूप के साथ खुद को बदलने का प्रयास जारी है।”… और पढ़ें

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